Wednesday, May 29, 2019

सालाना अप्रेज़ल क्या बेकार की क़वायद है

बिज़नेस मॉडल चाहे जो भी हो, हर कंपनी अंत में अपने लोगों पर निर्भर करती है- कोई कम कोई ज़्यादा.

छोटे-बड़े हर व्यवसाय में कुछ लीडर होते हैं जो उत्पादकता बढ़ाते हैं और कंपनी के नतीजे बेहतर करते हैं.

उनसे अलग कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने घटिया प्रदर्शन से कंपनी को पीछे खींचते हैं.

कंपनी की कामयाबी और नाकामी कर्मचारियों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है. जैसा कि जनरल इलेक्ट्रिक के पूर्व चेयरमैन जैक वेल्च ने एक बार कहा था, "सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों वाली टीम जीतती है."

किसी खिलाड़ी का प्रदर्शन उसके आंकड़ों में झलकता है, लेकिन किसी सेल्स पर्सन ने कैसा काम किया, यह बता पाना कहीं ज़्यादा मुश्किल है.

कंपनियां हर साल लाखों डॉलर और सैकड़ों घंटे ख़र्च करके अपने कर्मचारियों के प्रदर्शन की समीक्षा करती हैं. इसके लिए चेकलिस्ट बनाए जाते हैं.

कारोबार जगत के विद्वानों ने भी इस मुद्दे पर गहनता से अध्ययन किया है. नतीजा क्या रहा है?

वर्जीनिया की मैनेजमेंट सलाहकार कंपनी PDRI की सीईओ और मैनेजमेंट एक्सपर्ट एलैन पुलकोस का कहना है कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर कर्मचारियों का मूल्यांकन करने से न तो उनके प्रदर्शन में कोई सुधार होता है, न ही कंपनी को किसी तरह का प्रतिस्पर्धी लाभ मिलता है.

वह कहती हैं, "यह बेहद ही ख़र्चीली क़वायद है और उत्पादकता पर इसका कोई असर नहीं पड़ता."

कई प्रयासों के बावजूद आज तक वह रेटिंग सिस्टम नहीं बन पया जो यह बता सके कि अमुक कंपनी में बेहतरीन काम करने वाले लोग हैं और अमुक कंपनी में औसत दर्जे के कर्मचारी हैं.

पुलकोस 2012 की एक रिपोर्ट का हवाला देती हैं जिसमें 40 कंपनियों के 23 हजार कर्मचारियों की रेटिंग देखी गई थी और नतीजा निकला था कि रेटिंग का मुनाफ़े या नुक़सान पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.

वह कहती हैं, "परफॉर्मेंस रेटिंग का कंपनी के प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं है."

पुलकोस का कहना है कि कर्मचारियों को ग्रेड देने के जितने भी तरीक़े हैं, उनमें से सालाना या छमाही प्रदर्शन समीक्षा संभवतः सबसे नुक़सानदेह है और इससे कोई मदद नहीं मिलती.

"वे असल में विषाक्त हैं और लोग उनसे नफ़रत करते हैं."

ब्रेन इमेजिंग रिसर्च का हवाला देते हुए पुलकोस कहती हैं कि सबसे तेज़तर्रार कर्मचारी भी अप्रेज़ल के समय रक्षात्मक मोड में चले जाते हैं.

जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में मैनेजमेंट के प्रोफ़ेसर और जाने-माने विद्वान हर्मन एग्युनिस का कहना है कि सालाना प्रदर्शन समीक्षा कंपनी की संस्कृति के लिए बेहद नुक़सानदेह हो सकती है.

"यह आत्मा को कुचलने वाली क़वायद है. कर्मचारियों को पता नहीं होता कि उन्हें क्या करना है और मैनेजर इसे कोई भाव नहीं देते. वे सिर्फ़ इसलिए इसे करते हैं क्योंकि एचआर ने उनको ऐसा करने को कहा था."

एग्युनिस का कहना है कि प्रदर्शन समीक्षा अक्सर अपनी राजनीति साधने का ज़रिया बन जाती है और इससे किसी कर्मचारी की असली ताक़त या क़मजोरियों की सही जांच नहीं होती.

"कुछ मैनेजर जानबूझकर पूर्वाग्रह से भरी रेटिंग देते हैं. मैंने ख़ुद एक सुपरवाइज़र को एक बुरे कर्मचारी को अच्छी रेटिंग देते हुए देखा है जिससे उसे तरक़्क़ी मिल जाए."

फिर भी कुछ एचआर विशेषज्ञ सालाना प्रदर्शन समीक्षा को कारगर मानते हैं.

सुज़ैन लुकास ने फ़रवरी में अपने लोकप्रिय एविल एचआर लेडी ब्लॉग में लिखा है, "यह एकदम बुरी चीज़ नहीं है. औपचारिक रेटिंग से पूरी कंपनी में प्रदर्शन और जुड़ाव का पता चलता है."

"यदि कोई समूह (विभाग, अनुभव स्तर वगैरह) अलग दिखता है तो इससे संकेत मिलता है कि वहां कुछ बहुत अच्छा है या फिर कोई समस्या है."

प्रदर्शन समीक्षा पर हो रहे शोध ने कई कंपनियों को अपने रुख़ के बारे में फिर से सोचने के लिए प्रेरित किया है.

डेल, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, गैप, एसेंट्योर और जनरल इलेक्ट्रिक जैसी बड़ी कंपनियों ने इससे पीछा छुड़ा लिया है.

लेकिन 2018 के 'वर्ल्ड एट वर्क' सर्वे में पता चला कि 80 फीसदी कंपनियां अभी भी इससे चिपकी हुई हैं. पुलकोस कहती हैं, "संगठनों के व्यवहार में बदलाव बहुत मुश्किल है."

अप्रेज़ल की प्रक्रिया से छुटकारा पा चुकी कंपनियां अब भी कर्मचारियों पर नज़र रखती हैं.

एग्युनिस कहती हैं, "जो कंपनियां रेटिंग से पीछा छुड़ा लेने के दावे करती हैं, वे अब भी रेटिंग का इस्तेमाल करती हैं. बस वह अलग स्तर पर होता है."

किसी को तरक़्क़ी देने या तनख़्वाह बढ़ाने के लिए मैनेजर के पास कोई आधार होना चाहिए. यदि प्रदर्शन का कोई आंकड़ा न हो तो यह प्रक्रिया अराजक हो सकती है.

कुछ मामलों में, यदि कंपनियां अपने फ़ैसलों को सही साबित नहीं कर पाती हैं तो उनको मुक़दमे का भी सामना करना पड़ सकता है.

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